इन 4 कारणों से जा सकती है नवजात शिशु की जान!

 

नवजात शिशु

जन्म के बाद पहला महीना किसी भी नवजात शिशु के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के मुताबिक साल 2020 में पूरे विश्व में 2.4 मिलियन बच्चों की मौत जन्म के 28 दिनों के अंदर ही हो गयी थी। वहीं यूनिसेफ इंडिया के मुताबिक भारत में तकरीबन 40% नवजात शिशु जन्म के वक्त या जन्म के 24 घंटे के अंदर अपनी जान गवां देते हैं। 

नवजात शिशु की मौत के 4 मुख्य कारण

यूं तो कई कारण हैं जिनकी वजह से नवजात शिशु की मौत हो सकती है लेकिन इनमें 4 कारण प्रमुख है, जो इस प्रकार से है

1. समय से पहले जन्म होना 

जब प्रेगनेंसी के 37वें हफ्ते के पहले ही  बच्चे का जन्म हो जाता है तो उसे प्रीटर्म बर्थ और इन बच्चों को प्री-मैच्योर बेबी कहा जाता है। प्री टर्म बर्थ को भी 3 कैटेगरी में बांटा गया है। 

  • एक्ट्रीमली प्रीटर्म (28 हफ्ते के पहले बच्चे का जन्म होना)
  • वैरी प्रीटर्म (28 से 32वें सप्ताह के बीच बच्चे का जन्म होना)
  • मॉडरेट से लेट प्रीटर्म (32 से 37वें हफ्ते के बीच बच्चे का जन्म होना)

आँकड़ों के अनुसार भारत में 3.7 मिलियन बच्चे समय से बहुत पहले पैदा हो जाते हैं। वहीं यहां तकरीबन 35% नवजात शिशु की मौत प्री-मेच्यौरिटी के कारण ही होती है। खास तौर पर जो बच्चे 28 सप्ताह के पहले पैदा होते हैं उनके बचने की संभावना बहुत कम होती है। ऐसे बच्चे काफी कमजोर भी होते हैं।

2. नवजात में इंफेक्शन

नवजात शिशु में बैक्टीरियल इंफेक्शन होने की संभावना ज्यादा होती है। इन इंफेक्शन्स में निमोनिया, सेप्सिस, मेनिनजाइटिस आदि शामिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक इंफेक्शन के कारण हर साल तकरीबन साढ़े 5 लाख शिशु अपनी जान गंवाते हैं। वहीं भारत में तकरीबन 33% नवजात शिशु की मौत नियोनेटल इंफेक्शन के कारण होती है। हालांकि, अगर सही समय पर इन संक्रमण के लक्षणों को पहचानकर बच्चे का इलाज शुरू कर दिया जाये तो उनकी जान बचायी भी जा सकती है।

3. बर्थ एसफिक्सिया 

जन्म के वक्त जब नवजात शिशु को सांस लेने में बहुत तकलीफ होती है तो इस स्थिति को बर्थ एसफिक्सिया कहा जाता है। दरअसल, अक्सर बच्चे जन्म के वक्त रोते नहीं हैं जिसके कारण उनके मस्तिष्क तक ऑक्सीजन नहीं पहुँच पाता। जिसकी वजह से कई बच्चों की जान भी चली जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल तकरीबन 9 लाख बच्चों की मौत बर्थ एसफिक्सिया के कारण होती है। वहीं भारत में 20% नवजात शिशु की मौत का कारण बर्थ एसफिक्सिया है। 

4. जन्मजात विकृतियां

ई बार नवजात शिशु में जन्मजात विकृतियां देखी जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में तकरीबन 6% बच्चे जन्मजात विकृतियों के साथ पैदा होते हैं। भारत में लगभग 9% बच्चों की मौत का कारण ये जन्मजात विकृतियां ही हैं। कुछ विकृतियों जैसे फटे होंठ या तालू, क्लब फुट एवं हर्निया का इलाज सर्जरी या बिना सर्जरी के भी किया जा सकता है। वहीं हृदय दोष, डाउन सिड्रोम आदि बीमारियां बच्चे को आजीवन परेशान कर सकती हैं।


इसीलिए नवजात शिशुओं के लिए जन्म के बाद के 28 दिनों को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान नवजात शिशु में पायी जाने वाली जटिलताओं या समस्याओं का प्रबंधन किया जा सकता है वरना यही बीमारियां उनकी जान ले सकती है।


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