प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में होते हैं ये प्रीनेटल स्क्रीनिंग टेस्ट

प्रेग्नेंसी


माता-पिता बनना एक कपल के लिए खुशी के साथ ढ़ेर सारी जिम्मेदारियां भी लाता है। जब एक महिला गर्भधारण करती है, तो दंपति को सावधानी बरतने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। यह बच्चे के विकास के लिए भी जरूरी है और गर्भवती महिला के स्वास्थ्य के लिए भी। गर्भावस्था के पहले तीन महीने गर्भवती महिला के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में अगर महिला हर चीज़ का ध्यान रखे तो वह एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण होता है गर्भावस्था की पुष्टि होने के बाद नियमित रूप से टेस्ट कराते रहना। आइए जानते हैं कि गर्भावस्था की पहली तिमाही में कौन से टेस्ट जरूरी होते हैं।

प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट कराना बेहद जरूरी होता है। इससे भ्रूण के जन्म दोष होने के जोखिम को निर्धारित करने में पहले से ही मदद मिल सकती है। 

पहली तिमाही में अल्ट्रासाउंड कराने का महत्व

अल्ट्रासाउंड कराने से गर्भावस्था की स्थिति का मूल्यांकन करने में मदद मिलती है। इससे आप निम्निलिखित बातें पता कर सकते हैं-
  • गर्भ में बच्चा एक है या एक से अधिक 
  • गर्भ में बच्चे की धड़कन सही से चल रही है या नहीं 
  • बच्चे का आकार बढ़ रहा है या नहीं 
  • प्रसव की तारिख कब तक हो सकती है 
  • एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का पता लगाया जा सकता है 
  • गर्भाशय में किसी तरह की असामान्यताओं का पता लगाया जा सकता है 
  • ट्रोफोब्लास्टिक रोग का पता लगाया जा सकता है 
अल्ट्रासाउंड इस बात को सुनिश्चित करने में मदद करता है कि यूट्रस और भ्रूण में कोई असामान्यता तो नहीं। साथ ही यह भी कि प्रेग्‍नेंसी की स्थिति सामान्य है या नहीं। 

पहली तिमाही में ब्लड टेस्ट कराने का महत्व

कई बार प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिला में खून की कमी हो जाती है। अगर गर्भावस्था के दौरान मां को कोई परेशानी होती है तो उसका असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी पड़ता है। इसलिए आवश्यकता के अनुसार पहली तिमाही में नियमित रूप से ब्लड टेस्ट कराना भी जरूरी होता है। ब्लड टेस्ट करवाने से आपको निम्नलिखित बातों का पता लगाने में मदद मिल सकती है:
  • गर्भ में बच्चा स्वस्थ है या नहीं 
  • शरीर में आयरन की कमी
  • सिकल सेल रोग
  • थैलेसीमिया
  • किसी प्रकार का संक्रमण
सलाह के अनुसार प्रेग्नेंसी के दौरान इन जांचों को नियमित कराने से भ्रूण में डाउन सिंड्रोम जैसे आनुवंशिक जन्म दोष का भी पता लगाया जा सकता है। इसलिए ये टेस्ट करवाना बेहद जरूरी है।

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