Laparoscopy Meaning in Hindi - लेप्रोस्कोपी (Laparoscopy in Hindi)

 

laparoscopy meaning in hindi

अब ज्यादा टांके लगाए बिना भी ऑपरेशन संभव है। 
अब सर्जरी कराने के बाद मरीज को ज्यादा वक्त तक अस्पताल में रहने की जरूरत नहीं है। क्या हुआ? आपने जो पढ़ा उस पर आपको विश्वास नहीं हो रहा? तो विश्वास कर लीजिये। मेडिकल साइंस इतनी ज्यादा तरक्की कर चुका है कि अब कम टांकों और कम दर्द के साथ व्यक्ति का ऑपरेशन किया जा सकता है। इस नयी पद्धति को ही लेप्रोस्कोपी (Laparoscopy Meaning in Hindi) के नाम से जाना जाता है। इस सर्जरी का लक्ष्य यही है कि मरीज को किसी बड़े ट्रॉमा से न गुजरना पड़े और उसकी क्वालिटी ऑफ लाइफ बेहतर हो सके।

Laparoscopy

जानें क्या होता है लेप्रोस्कोपी (Laparoscopy in Hindi)?

लेप्रोस्कोपी वो प्रक्रिया है जिसमें लेप्रोस्कोप नामक सर्जिकल उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है। ये ट्यूब के आकार का लंबा और पतला उपकरण होता है और इसके निचले हिस्से में लाइट और कैमरा लगा हुआ रहता है। पेट में एकदम छोटा सा चीरा लगाकर लेप्रोस्कोप को अंदर प्रवेश कराया जाता है ताकि पेट के अंदरूनी हिस्से की अच्छे से जाँच की जा सके। (Ref)

लेप्रोस्कोपी से किस तरह की कंडीशन्स का पता लगाया जा सकता है?

अगर पेट में दर्द या सूजन हो या फिर व्यक्ति को पेल्विक पेन शुरू हो जाये तो ऐसी स्थिति में लेप्रोस्कोपी (Laparoscopy Meaning in Hindi) पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं अगर एक्स-रे या सीटी स्कैन में पेट या पेल्विक में कोई समस्या नजर आती है तो उसकी पुष्टी के लिए भी मरीज को लेप्रोस्कोपी कराना पड़ सकता है। इसके माध्यम से डॉक्टर पेट के अंदरूनी हिस्से की अच्छे से जाँच कर सकते हैं। कुछ कंडीशन्स जिसमें इस पद्धति का इस्तेमाल किया जा सकता है वो इस प्रकार से हैं -
  • एक्टोपिक प्रेगनेंसी
  • एंडोमेट्रीयोसिस
  • पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज
  • ओवेरियन सिस्ट
  • अपेंडिसाइटिस

लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के बारे में जानें!

लेप्रोस्कोप की मदद से अंदरूनी हिस्से को देखने के साथ-साथ डॉक्टर और भी सूक्ष्म उपकरणों का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए पेट में एक छोटा सा चीरा और लगाया जाता है ताकि इन सूक्ष्म उपकरणों को अंदर प्रवेश कराया जा सके और कट, ट्रीम, बायोप्सी व अन्य प्रक्रियाएं पूरी की जा सकें। इसे मिनिमल इनवेसिव सर्जरी भी कहते हैं।(Ref)

कैसे किया जाता है लेप्रोस्कोपी का इस्तेमाल?

लेप्रोस्कोपी (Laparoscopy in Hindi) को ‘कीहोल सर्जरी’ भी कहा जाता है।(Ref) लेप्रोस्कोपी और लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में मुख्य रूप से जनरल एनेस्थीसिया का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद सर्जन या स्त्री रोग विशेषज्ञ नाभि के पास 1-2 सेंटीमीटर का छोटा सा चीरा लगाते हैं ताकि लेप्रोस्कोप को अंदर प्रवेश कराया जा सके। स्त्री रोग विशेषज्ञ इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड गैस का इस्तेमाल करते हैं ताकि पेल्विक के अंदर की स्थिति को वे अच्छे से समझ सकें। जब ये प्रक्रिया की जाती है तो चिकित्सक के सामने टीवी मॉनिटर मौजूद होता है जिसमें वे आसानी से पेट व पेल्विक के अंदर की तस्वीरें देख पाते हैं। अगर मरीज की सर्जरी की जाती है तो पेट की त्वचा में एक या उससे ज्यादा छोटे चीरे लगाकर अन्य सूक्षण उपकरणों को प्रवेश कराया जाता है। लेप्रोस्कोप की मदद से डॉक्टर या सर्जन इन उपकरणों को अच्छे से देख पाते हैं और फिर आवश्यक प्रक्रिया की जाती है। जब ये प्रक्रिया समाप्त हो जाती है तो पेट के अंदर प्रवेश कराये गये उपकरणों को बाहर निकाला जाता है और लगाये गये चीरे को फिर से स्टिच कर दिया जाता है।(Ref)

लेप्रोस्कोपी के फायदे

लेप्रोस्कोपी एक बेहद सुरक्षित प्रक्रिया है। इसके माध्यम से की जाने वाली सर्जरी के कई फायदे हैं -

  • चूंकि इसमें चीरा बहुत छोटा लगाया जाता है इसीलिए मरीज को ज्यादा दर्द का एहसास नहीं होता है। इसके कारण मरीज को ज्यादा दवाईयां भी लेनी नहीं पड़ती हैं।(Ref)  
  • छोटा सा चीरा लगाये जाने के कारण मरीज की ब्लीडिंग भी काफी कम होती है।
  • चीरे का आकार बहुत छोटा रहता है जिसके कारण सर्जरी के बाद टांकों के निशान नजर नहीं आते।
  • लेप्रोस्कोपी प्रक्रिया के बाद इंफेक्शन का खतरा भी बहुत कम रहता है।
  • इस प्रक्रिया के बाद मरीज को ज्यादा वक्त तक अस्पताल में रूकने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। अगर सब ठीक रहे तो मरीज को 24 घंटे के अंदर अस्पताल से डिस्चार्ज किया जा सकता है।

इस बारे में गैस्ट्रो सर्जन, डॉ. कपिल देव शर्मा का कहना है कि लेप्रोस्कोपी कराने के बाद मरीज जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं, मरीज को दर्द भी कम होता है और शरीर में सर्जरी के निशान भी ज्यादा नहीं रहते। चूंकि इसमें ज्यादा चीरा नहीं लगाया जाता इसीलिए सर्जरी के 2-3 दिन बीत जाने के बाद ही मरीज़ अपने सामान्य दिनचर्या के अनुसार कार्य कर सकता है। 

कब डॉक्टर से करना चाहिये संपर्क?

लेप्रोस्कोपी विधि से सर्जरी कराने के बाद अक्सर मरीज को 24 घंटे अस्तपाल में रुकने की सलाह दी जाती है। कई बार ऑपरेशन के बाद मरीज को कुछ परेशानियां हो सकती हैं, जैसे -
  • 100 डिग्री या उससे ज्यादा बुखार होना
  • अचानक से कपकपी का एहसास होना
  • पेट के निचले हिस्से में दर्द होना
  • जी मिचलाना
  • उल्टी होना
  • दिल की धड़कन का तेज हो जाना
  • पेशाब में परेशानी होना
अगर इस तरह के लक्षण नजर आये तो मरीज को तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिये। (Ref) बात अगर डायग्नोस्टिक लेप्रोस्कोपी के बारे में की जाये तो इसके साइड इफेक्ट्स बहुत ही कम नजर आते हैं। 1000 में से 1 व्यक्ति को डायग्नोस्टिक लेप्रोस्कोपी ऑपरेशन के दुष्प्रभाव से गुजरना पड़ सकता है। वहीं एडवांस लेप्रोस्कोपी सर्जरी कराने वाले 300 में से 1 व्यक्ति में इसके कुछ गंभीर दुष्प्रभाव नजर आ सकते हैं, जैसे - किसी अंग को नुकसान पहुँचना, ब्लड वेसेल्स का क्षतिग्रस्त होना, एनेस्थीसिया से गंभीर एलर्जी होना, कार्बन डाइऑक्साइड का इस्तेमाल होने के कारण नसों एवं धमनियों में गैस के बुलबुले बनना आदि।(Ref

इस मामले में और भी विस्तार से जानने के लिए आप अपने चिकित्सक से संपर्क कर सकते हैं। वैसे चाहे निदान हो या सर्जरी, दोनों ही मामलों में लेप्रोस्कोपी कारगर साबित हो चुकी है। इसीलिए तो आजकल बड़े से बड़े ऑपरेशन में भी इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है।

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