नवजात शिशु को पीलिया होने पर हर माता-पिता को अक्सर चिंता होती है। इसे ठीक करने के लिए वे तरह-तरह के उपाय खोजने लगते हैं। यह बिल्कुल स्वाभाविक है। मगर पेरेंट्स ज्यादा परेशान न हों। शिशु में पीलिया के लिए आमतौर पर उपचार की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह कुछ ही दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है। कभी-कभी ये लक्षण लंबे समय तक रह सकते हैं। अब यह दुविधा अक्सर बनी रहती है कि नवजात शिशु को पीलिया के इलाज की जरूरत कब पड़ती है। तो आज हम आपकी इस दुविधा को दूर करने की कोशिश करेंगे। पीलिया की स्थिति के अनुसार शिशु में इसका उपचार किया जाता है (Ref:)
माइल्ड पीलिया-
यदि पीलिया की स्थिति ज्यादा गंभीर नहीं है तो बच्चे को किसी इलाज की आवश्यकता नहीं होती है। जन्म के बाद शिशु का लिवर विकसित होता है। इसलिए बच्चे के लीवर को बिलीरुबिन को ठीक से प्रोसेस करने में कुछ दिन लगेंगे। इसलिए माइल्ड पीलिया होने पर ये अपने आप कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।
मॉडरेट पीलिया-
नवजात शिशु को पीलिया होने की इस स्थिति का अर्थ है- बच्चे के बिलीरुबिन का स्तर बढ़ जाना। ऐसे में पीलिया का उपचार करने के लिए फोटोथेरेपी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान आपके शिशु के कपड़े उतारे जा सकते हैं। इसके बाद शिशु को नीली रोशनी में रखा जा सकता है। उपचार की यह प्रक्रिया आमतौर पर एक या दो दिन तक चलती है। इस प्रक्रिया के दौरान बच्चे को डिहाइड्रेशन से बचाना होता है। इसके लिए बच्चे को हर तीन से चार घंटे में मां को दूध पिलाने की जरूरत पड़ सकती है। सीवियर पीलिया-
कभी-कभी नवजात शिशु को पीलिया होने पर स्थिति गंभीर हो जाती है। ऐस में एक समय में एक से अधिक नीली रोशनी यानी मल्टीपल फोटोथेरेपी से शिशु का उपचार करने की आवश्यकता पड़ सकती है। यह स्थिति बच्चों में बहुत कम देखी जाती है।
आमतौर पर ये पीलिया की 3 स्थितियां होती हैं। इन स्थितियों के अनुसार यह तय किया जाता है कि नवजात शिशु को पीलिया के इलाज की जरूरत है या नहीं। इसलिए शिशु को पीलिया होने पर माता-पिता घबराएं नहीं। स्थिति को समझने की कोशिश करें और आवश्यक उपचार कराएं।
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