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जानिये डायबिटीज क्या है और इसके निदान के 4 तरीके!

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  डायबिटीज क्या है ? ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब हर एक व्यक्ति के पास होना चाहिये। डायबिटीज सिर्फ बुजुर्गों को ही नहीं बल्कि बच्चों और युवा पीढ़ी को भी प्रभावित कर रहा है। ये बीमारी तब पैदा होती है जब या तो पैन्क्रियाज में उचित मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन नहीं होता या फिर पैन्क्रियाज द्वारा बनाये गये इंसुलिन का उपयोग शरीर प्रभावी ढंग से नहीं कर पाता। इन दोनों ही स्थितियों में रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है और व्यक्ति डायबिटीज का शिकार हो जाता है।  5 मुख्य लक्षण जो देते हैं टाइप 2 डायबिटीज का संकेत वैसे तो डायबिटीज कई प्रकार के होते हैं लेकिन इनमें से मुख्य है - टाइप 1 डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज। टाइप 2 डायबिटीज होने पर व्यक्ति में अचानक ही लक्षण नजर आने लगते हैं जो कि इस प्रकार से हैं - अचानक से बहुत ज्यादा प्यास लगना जरूरत से ज्यादा पेशाब आना आँखों से धुंधला दिखाई देना हर वक्त थकावट का एहसास होना बिना किसी कारण के अचानक वजन का घटना टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण ये बीमारी मुख्य रूप से बच्चों में पायी जाती है। इसमें नजर आने वाले लक्षण हैं - वजन घटना बार-बार पेशाब लगना बहुत ज्यादा

Balanced Diet: संतुलित आहार के लिए आवश्यक हैं ये 7 चीजें

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  स्वस्थ जीवन जीने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है संतुलित आहार   (Balanced Diet)  । स्वाद के लिए भोजन तो हर कोई करता है लेकिन स्वास्थ्य का क्या? बीमारियों से बचने के लिए सिर्फ आहार काफी नहीं है। जरूरी ये है कि आपकी थाली में सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में मौजूद हों, तभी उसे संतुलित आहार कहा जा सकता है। इसके लिए आपके भोजन में 7 चीजों का होना बहुत जरूरी है।  1. कार्ब्स -   कार्ब्स यानी कि कार्बोहाइड्रेट शरीर की कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक है। संतुलित आहार में 45 से 65% कार्बोहाइड्रेट मौजूद होना चाहिये। कार्बोहाइड्रेट से शरीर को उर्जा मिलती है और इसे सही मात्रा में लेना जरूरी है। ब्राउन राइस, केला, आलू व अन्य कई खाद्य पदार्थों से व्यक्ति को कार्बोहाइड्रेट मिल सकता है।  2. फाइबर -   पाचन शक्ति को मजबूत बनाये रखने में फाइबर युक्त भोजन की भूमिका सबसे ज्यादा अहम होती है। जिन्हें कब्ज की शिकायत है उन्हें ज्यादा से ज्यादा फाइबर युक्त भोजन का सेवन करना चाहिये जैसे - फल, हरी पत्तेदार सब्जियां, दलिया आदि। संतुलित आहार के लिए ये बहुत जरूरी है।  3. प्रोटीन - बाल, त्वचा और मांसपेशियों के लिए शरीर में प्रो

इन 4 कारणों से जा सकती है नवजात शिशु की जान!

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  जन्म के बाद पहला महीना किसी भी नवजात शिशु के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के मुताबिक साल 2020 में पूरे विश्व में 2.4 मिलियन बच्चों की मौत जन्म के 28 दिनों के अंदर ही हो गयी थी। वहीं यूनिसेफ इंडिया के मुताबिक भारत में तकरीबन 40% नवजात शिशु जन्म के वक्त या जन्म के 24 घंटे के अंदर अपनी जान गवां देते हैं।  नवजात शिशु की मौत के 4 मुख्य कारण यूं तो कई कारण हैं जिनकी वजह से नवजात शिशु की मौत हो सकती है लेकिन इनमें 4 कारण प्रमुख है, जो इस प्रकार से है 1. समय से पहले जन्म होना  जब प्रेगनेंसी के 37वें हफ्ते के पहले ही  बच्चे का जन्म हो जाता है तो उसे प्रीटर्म बर्थ और इन बच्चों को प्री-मैच्योर बेबी कहा जाता है। प्री टर्म बर्थ को भी 3 कैटेगरी में बांटा गया है।  एक्ट्रीमली प्रीटर्म (28 हफ्ते के पहले बच्चे का जन्म होना) वैरी प्रीटर्म (28 से 32वें सप्ताह के बीच बच्चे का जन्म होना) मॉडरेट से लेट प्रीटर्म (32 से 37वें हफ्ते के बीच बच्चे का जन्म होना) आँकड़ों के अनुसार भारत में 3.7 मिलियन बच्चे समय से बहुत पहले पैदा हो जाते हैं। वहीं यहां तकरीबन 35% नवजात शिशु की मौत

प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में होते हैं ये प्रीनेटल स्क्रीनिंग टेस्ट

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माता-पिता बनना एक कपल के लिए खुशी के साथ ढ़ेर सारी जिम्मेदारियां भी लाता है। जब एक महिला गर्भधारण करती है, तो दंपति को सावधानी बरतने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। यह बच्चे के विकास के लिए भी जरूरी है और गर्भवती महिला के स्वास्थ्य के लिए भी। गर्भावस्था के पहले तीन महीने गर्भवती महिला के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में अगर महिला हर चीज़ का ध्यान रखे तो वह एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण होता है गर्भावस्था की पुष्टि होने के बाद नियमित रूप से टेस्ट कराते रहना। आइए जानते हैं कि गर्भावस्था की पहली तिमाही में कौन से टेस्ट जरूरी होते हैं। प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट कराना बेहद जरूरी होता है। इससे भ्रूण के जन्म दोष होने के जोखिम को निर्धारित करने में पहले से ही मदद मिल सकती है।  पहली तिमाही में अल्ट्रासाउंड कराने का महत्व अल्ट्रासाउंड कराने से गर्भावस्था की स्थिति का मूल्यांकन करने में मदद मिलती है। इससे आप निम्निलिखित बातें पता कर सकते हैं- गर्भ में बच्चा एक है या एक से अधिक  गर्भ में बच्चे की धड़कन सही से चल र

ये 3 स्थितियां बन सकती है हार्ट फेलियर का कारण!

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  हार्ट फेलियर के मरीजों की हो सकती है सडन कार्डियक अरेस्ट से मौत। जी हाँ!! आपने बिलकुल सही पढ़ा। वर्तमान में हार्ट से जुड़ी बीमारियां एक चर्चा का विषय बनी हुई है। आये दिन हार्ट अटैक और हार्ट फेल होने से मौत की खबरे सुनने को मिल ही जाती है। चूंकि हार्ट अटैक के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं तो लोगों को इसके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी हो सकती है। वहीं अगर बात हार्ट फेलियर की करें तो अभी भी लोगों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। इसे दिल की विफलता भी कहा जाता है। तो आइये पहले जानते हैं कि यह होता क्या है।  हार्ट फेलियर क्या है, जानें? व्यक्ति का हार्ट फैल तब होता है जब हृदय शरीर के अन्य अंगों तक पर्याप्त मात्रा में ब्लड नहीं पहुंचा पाता है। हार्ट फेलियर किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन वृद्ध लोगों में यह सबसे आम है। इसे आमतौर पर ठीक नहीं किया जा सकता है। मगर इसके कारणों को समझकर इस स्थिति को पैदा होने से रोका जा सकता है।  तो आइए बात करते हैं उन स्थितियों के बारे में जो बन सकती है हार्ट फेलियर का कारण:  1. कोरोनरी हृदय रोग कुछ धमनियां है जो हृदय तक रक्त पहुँचाती है। जब इन्हीं धमनियो

इन 6 बातों का रखें ध्यान और पाएं स्तन कैंसर के लक्षण से राहत

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  स्तन कैंसर के बढ़ते मामले चिंता का विषय है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों की मानें तो साल 2020 में दुनिया में 2.3 मिलियन महिलाएं स्तन कैंसर से पीड़ित पायी गयी थीं। वहीं 6 लाख 85 हजार महिलाओं ने इस बीमारी के कारण अपनी जान गवां दी थी1। हालांकि, ये एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज किया जा सकता है। स्तन कैंसर के लक्षण को अगर समय पर पहचान लिया जाये तो इस बीमारी का इलाज पूर्ण रूप से संभव है। महिलाएं चाहें तो खुद भी इसके लक्षणों को पहचान सकती हैं। स्तन कैंसर के लक्षण स्तन में गांठ का एहसास होना। हालांकि, इस गांठ में दर्द नहीं होता है। स्तन के आकार में परिवर्तन होना। निप्पल से खून या कोई तरल पदार्थ निकलना। निप्पल का लाल हो जाना। त्वचा का लाल होना या अन्य कोई बदलाव नजर आना। रिस्क फैक्टर जो बढ़ा सकते हैं स्तन कैंसर का खतरा कुछ ऐसे रिस्क फैक्टर भी हैं जिसके कारण महिलाओं में स्तन कैंसर के लक्षण नजर आ सकते हैं, जैसे- अगर किसी महिला के परिवार में स्तन कैंसर का इतिहास रहा हो तो उनमें इस बीमारी का खतरा बढ़ सकता है। कई बार बढ़ती उम्र के कारण भी महिलाओं में स्तन कैंसर के लक्षण नजर आ सकते हैं। शराब और ध

क्या घर पर हो सकता है डेंगू का उपचार?

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  डेंगू एक वायरल इंफेक्शन है जो एडीज मच्छर के काटने से फैलता है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया आज इस बीमारी का सामना कर रही है। अगर डेंगू का उपचार सही समय पर न हो तो ये जानलेवा भी साबित हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आज लगभग आधी दुनिया पर डेंगू का खतरा मंडरा रहा है। वहीं हर साल 100 से 400 मिलियन इंफेक्शन के मामले सामने आ रहे हैं।  डेंगू के लक्षण क्या हैं? विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कुछ मामलों में डेंगू के लक्षण नजर नहीं आते। वहीं कुछ में हल्के लक्षण नजर आते हैं जो 1 से 2 हफ्तों में ठीक हो जाते हैं। आम तौर पर इसके लक्षण, इंफेक्शन होने के 4 से 10 दिन बाद नजर आते हैं, जो 2 से 7 दिनों तक रह सकते हैं। एक नजर डालें डेंगू के हल्के लक्षणों पर - तेज बुखार तेज सिरदर्द आँखों में दर्द मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द जी मिचलाना उल्टी रैशेज क्या है डेंगू का उपचार? मच्छरों से खुद को बचाना इस बीमारी का सर्वेश्रेष्ठ इलाज है। वैसे अगर देखा जाये तो डेंगू का कोई विशिष्ट इलाज उपलब्ध नहीं है1। इस बीमारी में लक्षणों के आधार पर ही मरीज का उपचार करने पर फोकस किया जाता है। ज्यादातर मामल