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हार्ट अटैक का उपचार है संभव! जानें कैसे देता है एंजियोप्लास्टी नयी जिंदगी?

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  एक वक्त था जब हार्ट अटैक को जीवन का अंत मान लिया जाता था लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। मेडिकल साइंस में इजात किये गये आधुनिक तकनीकों की मदद से हार्ट अटैक को हराना अब संभव हो चुका है। इन्हीं तकनीकों में से एक है एंजियोप्लास्टी। चिकित्सकों का भी यही मानना है कि इस पद्धति की मदद से हार्ट अटैक का उपचार अब और भी ज्यादा आसान हो गया है। एंजियोप्लास्टी को समझने से पहले जान लें क्या हैं हार्ट अटैक के लक्षण? हार्ट अटैक के लक्षण सीने में दर्द दिल की धड़कन का बढ़ना पसीना आना आँखों के सामने धुंधलापन छाना चक्कर आना जी मिचलाना हाथ या कंधे में दर्द होना इसके अलावा भी हार्ट अटैक के कुछ और गंभीर लक्षण मरीज में नजर आ सकते हैं। ऐसी स्थिति में बिना देरी किये हार्ट अटैक का उपचार कराना जरूरी है तभी मरीज की जान बचायी जा सकती है। इसी उपचार के तरीकों में एंजियोप्लास्टी शामिल है जिसे समझना हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है। जानें क्या होती है एंजियोप्लास्टी? एंजियोप्लास्टी वो प्रक्रिया है जिसकी मदद से ब्लॉक हो चुकी दिल की धमनियों को खोला जाता है। ये कोई बड़ी सर्जरी नहीं है और ना ही इसमें दिल या उसके आसपास कोई

प्रोस्टेट के लक्षण से राहत पाने के लिए डाइट में शामिल करें ये 3 चीजें!

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प्रोस्टेट पुरुषों में एक ग्रंथि है जो प्रजनन प्रणाली के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रोस्टेट का काम वीर्य बनाना है। उम्र बढ़ने के साथ अक्सर व्यक्ति को प्रोस्टेट से जुड़ी कुछ समस्याएं हो सकती हैं। जिनमें तीन सबसे आम प्रोस्टेट समस्याएं प्रोस्टेटाइटिस, प्रोस्टेट का बढ़ना और प्रोस्टेट कैंसर हैं। इन समस्याओं की वजह से व्यक्ति में कुछ इस तरह के प्रोस्टेट के लक्षण दिख सकते हैं- बार-बार पेशाब करने की इच्छा होना रात में बार-बार पेशाब लगना  पेशाब या वीर्य में खून आना पेशाब करते समय दर्द या जलन महसूस होना  स्खलन के दौरान दर्द महसूस होना पीठ के निचले हिस्से में दर्द या अकड़न महसूस होना  कई बार व्यक्ति इन लक्षणों को मामूली समझ कर अनदेखा कर देते हैं। मगर ये प्रोस्टेट के लक्षण ऊपर बताये गए तीन बीमारियों में से किसी एक का संकेत हो सकता है। इसलिए इन लक्षणों को इग्नोर न करें। ऐसे लक्षण दिखने पर आप डॉक्टर से सीधा संपर्क करें। इसके अलावा कुछ चीजें हैं जिन्हें नियमित डाइट में शामिल करने से भी आपको इन लक्षणों से राहत मिल सकती है। आइए जानते हैं कि क्या हैं वो 3 चीजें- क्रूसिफेरस सब्जियां क्रूस

Systolic Meaning in Hindi - जानें क्या होता है सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर?

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  अक्सर हम ऐसा सुनते हैं कि किसी व्यक्ति का ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ जाने से उसकी तबीयत खराब हो गयी। वहीं ऐसी खबरें भी मिलती हैं कि ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा कम हो जाने के कारण कोई व्यक्ति बेहोश हो गया। यहाँ सबसे अहम सवाल ये उठता है कि ये ब्लड प्रेशर होता क्या है और ब्लड प्रेशर कम है या ज्यादा, इसका पता कैसे लगाया जाये? जहाँ तक बात ब्लड प्रेशर मापने की है तो इसकी रीडिंग में 2 नंबर नजर आते हैं। उपर वाले नंबर को सिस्टोलिक ( Systolic Meaning in Hindi ) और नीचे वाले नंबर को डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं। इन दोनों नंबर के बारे में चर्चा करने से पहले ब्लड प्रेशर को समझना जरूरी है - ब्लड प्रेशर के बारे में जानें शरीर के प्रत्येक अंगों तक ऑक्सीजन पहुँचाने के लिए हार्ट रक्त को पंप करता है। जिनती बार दिल धड़कता है उतनी बार हार्ट धमनियों में रक्त को पंप करता है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स पर दबाव उत्पन्न होता है, इसे ही ब्लड प्रेशर या रक्तचाप कहते हैं। ( Ref ) क्या होता है सिस्टोलिक (Systolic Meaning in Hindi) और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर? दिल धड़कते समय ब्लड को पंप कर धमनियों में भेजता है। इस दौरान रक्त का

प्रेग्नेंसी में इन 6 कारणों से हो सकता है पेट के निचले हिस्से में दर्द!

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  प्रेग्नेंसी में पेट के निचले हिस्से में दर्द होना सामान्य है। कई बार गैस, अपच या कब्ज जैसी समस्याओं के कारण महिलाओं को पेट में दर्द शुरू हो जाता है। ऐसी स्थिति में ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं होती। वहीं कभी-कभी पेट के निचले हिस्से में दर्द के कारण में कुछ गंभीर समस्याएं शामिल हो सकती हैं, जिन्हें नजरअंदाज करना माँ और बच्चे दोनों को नुकसान पहुँचा सकता है। इसीलिए गर्भावस्था में महिलाओं में पेट के निचले हिस्से में दर्द के कारण को समझना जरूरी है। आज हम  ऐसे ही 6 कारणों पर चर्चा करेंगे जो इस प्रकार से हैं - 1. एक्टोपिक प्रेग्नेंसी जब फर्टिलाइज एग गर्भाशय से ना जुड़कर फैलोपियन ट्यूब, सर्विक्स या अन्य जगहों से जुड़ जाता है और बढ़ने लगता है तो इस स्थिति को एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहते हैं। ऐसी स्थिति में महिला को पेट के निचले हिस्से में दर्द का एहसास हो सकता है। गर्भावस्था के 4 से 12 हफ्तों के बीच एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के लक्षण नजर आते हैं। ऐसी स्थिति में चिकित्सक से तुरंत संपर्क करना आवश्यक है। ( Ref ) 2. गर्भपात प्रेग्नेंसी में महिलाओं में पेट के निचले हिस्से में दर्द के कारण में गर्भपात भी

इन 3 तरीकों से संभव है जुनूनी बाध्यकारी विकार का इलाज!

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  क्या आपको भी बार-बार अपने हाथों को धोने की आदत है? क्या आप भी अपने काम को लेकर कंफ्यूजन में रहते हैं? अगर हाँ, तो ये लक्षण मानसिक विकार का संकेत हो सकते हैं। इस बीमारी को जुनूनी बाध्यकारी विकार (Obsessive Compulsive Disorder) कहा जाता है। जुनूनी बाध्याकारी विकार में नजर आते हैं ये लक्षण हर वक्त अपने आसपास गंदगी का एहसास होना। अपने काम को लेकर सवालों में रहना जैसे - घर से निकलने वक्त दरवाजा बंद किया है या नहीं, गैस बंद है या नहीं आदि। खुद को या फिर दूसरों को नुकसान पहुँचाने के बारे में सोचना। किसी अपने के बाहर जाते ही ये डर लगना कि कहीं उनका एक्सीडेंट या वे किसी हादसे का शिकार न हो जाए। हर चीज को एक क्रम में लगाने की आदत और चीजें क्रम में ना हो तो गुस्सा आना। दूसरों के छूने से सामान के गंदे होने का डर लगना। बार-बार अपने हाथों को धोते रहना। अगर आप भी इस तरह का व्यवहार करते हैं या आपके आसपास किसी व्यक्ति में आपने इन लक्षणों को नोटिस किया है, तो तुरंत उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाएं। इस बीमारी का इलाज नीचे बताये जा रहे 3 तरीकों से किया जा सकता है - जुनूनी बाध्याकारी विकार का इलाज 1. कॉगनि

Ectopic Pregnancy in Hindi - एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic Pregnancy Meaning in Hindi)

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  प्रेगनेंसी किसी भी महिला के लिए एक सुनहरा अनुभव है। हालांकि, फर्टिलाइजेशन से लेकर बच्चे की डिलीवरी तक का समय हर महिला के लिए आसान हो, ये जरूरी नहीं है।  कई प्रेगनेंसी के मामले बिल्कुल नॉर्मल होते हैं, तो वहीं कुछ मामलों में महिलाओं को तकलीफों का सामना करना पड़ता है। इन्हीं मामलों में शामिल है एक्टोपिक प्रेग्नेंसी  ( Ectopic Pregnancy in Hindi )। अगर आंकड़ों की मानें तो भारत में एक्टोपिक प्रेग्नेंसी ( Ectopic Pregnancy Meaning in Hindi ) के मामले बहुत कम पाये जाते हैं। एक सर्वे के मुताबिक भारत में इस तरह की प्रेगनेंसी के सिर्फ 1-2% मामले ही सामने आये हैं। ( Ref )  जानें क्या होती है एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic Pregnancy in Hindi)? जब फर्टिलाइज एग गर्भाशय से ना जुड़कर फैलोपियन ट्यूब, एब्डोमिनल कैविटी या फिर गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) से जाकर जुड़ जाता है तो इस अवस्था को एक्टोपिक प्रेग्नेंसी ( Ectopic Pregnancy Meaning in Hindi ) कहा जाता है। आंकड़ों के मुताबिक 97% एक्टोपिक प्रेग्नेंसी फैलोपियन ट्यूब में होती है। वहीं अन्य 3% प्रेगनेंसी सर्विक्स, ओवरी या फिर पेरिटोनियल कैविटी में होती

नवजात शिशु को पीलिया होने पर इलाज कब किया जाता है? जानें

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  नवजात शिशु को पीलिया होने पर हर माता-पिता को अक्सर चिंता होती है। इसे ठीक करने के लिए वे तरह-तरह के उपाय खोजने लगते हैं। यह बिल्कुल स्वाभाविक है। मगर पेरेंट्स ज्यादा परेशान न हों। शिशु में पीलिया के लिए आमतौर पर उपचार की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह कुछ ही दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है। कभी-कभी ये लक्षण लंबे समय तक रह सकते हैं। अब यह दुविधा अक्सर बनी रहती है कि नवजात शिशु को पीलिया के इलाज की जरूरत कब पड़ती है। तो आज हम आपकी इस दुविधा को दूर करने की कोशिश करेंगे। पीलिया की स्थिति के अनुसार शिशु में इसका उपचार किया जाता है (Ref:) माइल्ड पीलिया- यदि पीलिया की स्थिति ज्यादा गंभीर नहीं है तो बच्चे को किसी इलाज की आवश्यकता नहीं होती है। जन्म के बाद शिशु का लिवर विकसित होता है। इसलिए बच्चे के लीवर को बिलीरुबिन को ठीक से प्रोसेस करने में कुछ दिन लगेंगे। इसलिए माइल्ड पीलिया होने पर ये अपने आप कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।  मॉडरेट पीलिया-  नवजात शिशु को पीलिया होने की इस स्थिति का अर्थ है- बच्चे के बिलीरुबिन का स्तर बढ़ जाना। ऐसे में पीलिया का उपचार करने के लिए फोटोथेरेपी प्रक्रिया का इस्ते